1. तीज माता की सवारी: हरियाली, सौभाग्य और श्रावण का उत्सव
तीज का पर्व खासतौर पर श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। यह पर्व महिलाओं के लिए सौभाग्य, पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना के रूप में प्रमुखता रखता है।
सवारी का स्वरूप:
जयपुर में तीज माता की सवारी शहर के पुराने हिस्से में चांदपोल गेट से निकलती है। इस सवारी में तीज माता (देवी पार्वती) की मूर्ति चांदी के रथ में सुसज्जित होकर नगर भ्रमण करती है। इसमें गाजे-बाजे, लोक कलाकारों की टोलियाँ, शाही बग्घियाँ, हाथी-घोड़े और पारंपरिक लवाजमा होता है।
राजपरिवार के प्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारी भी इस सवारी में शामिल होते हैं।
2. गणगौर की सवारी: कुंवारी कन्याओं की आस्था और विवाहिताओं की श्रद्धा
गणगौर का पर्व चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को आता है। यह पर्व शिव-पार्वती की पूजा के रूप में मनाया जाता है, जहां कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की कामना करती हैं और विवाहिताएं अपने पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं।
सवारी का स्वरूप:
जयपुर में गणगौर की सवारी की शुरुआत जनानी ड्योढ़ी (सिटी पैलेस) से होती है और यह त्रिपोलिया बाजार होते हुए तालकटोरा तक जाती है। इसमें ईसर (शिव) और गौरी (पार्वती) की मूर्तियाँ पारंपरिक पोशाकों में सजाई जाती हैं। यह सवारी अधिक धार्मिक और पारंपरिक होती है, जिसमें स्त्रियाँ गीत गाते हुए श्रद्धा के साथ चलती हैं।
3. तीज माता की पालकी के ऊपर सावन में बारिश को ध्यान में रखते हुए छतरी लगाई जाती है।
4. गणगौर माता की पालकी के ऊपर छतरी नहीं होती है पालकी चारों तरफ से खुली रहती है।
5. तीज माता की मूर्ति सफेद कलर की होती है जो लहरिया वस्त्र पहनी हुई होती है।
6. गणगौर माता की मूर्ति गेहुआ या गुलाबी रंग की होती है जिसे चुनरी बनाई जाती है।
7. तीज माता की सवारी से त्योहारों की शुरुआत मानी जाती है
8. गणगौर माता की सवारी के साथ त्यो
हार का समापन माना जाता है।